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अग्रं॑ पिबा॒ मधू॑नां सु॒तं वा॑यो॒ दिवि॑ष्टिषु। त्वं हि पू॑र्व॒पा असि॑ ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agram pibā madhūnāṁ sutaṁ vāyo diviṣṭiṣu | tvaṁ hi pūrvapā asi ||

पद पाठ

अग्र॑म्। पि॒ब॒। मधू॑नाम्। सु॒तम्। वा॒यो॒। इति॑। दिवि॑ष्टिषु। त्वम्। हि। पू॒र्व॒ऽपाः। असि॑ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:46» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:22» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सात ऋचावाले छियालीसवें सूक्त का आरम्भ हैं उसके प्रथम मन्त्र में बिजुली की विद्या के विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वायो) वायु के सदृश बलयुक्त (हि) जिससे (त्वम्) आप (दिविष्टिषु) श्रेष्ठ क्रियाओं में (पूर्वपाः) पूर्व वर्त्तमान जनों का पालन करनेवाले (असि) हो इससे (मधूनाम्) मधुर रसों के बीच में (अग्रम्) उत्तम (सुतम्) उत्पन्न किये गये रस का (पिबा) पान कीजिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! जिससे आप सनातन विद्याओं की रक्षा करके सब के लिये देते हो, इससे आप इन क्रियाओं में मुखिया होते हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्युद्विद्याविषयमाह ॥

अन्वय:

हे वायो ! हि त्वं दिविष्टिषु पूर्वपा असि तस्मान्मधूनामग्रं सुतं रसं पिबा ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्रम्) उत्तमम् (पिबा)। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (मधूनाम्) मधुराणां रसानां मध्ये (सुतम्) निष्पादितम् (वायो) वायुरिव बलिष्ठ (दिविष्टिषु) दिव्यासु क्रियासु (त्वम्) (हि) यतः (पूर्वपाः) यः पूर्वान् पाति सः (असि) ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! यतस्त्वं सनातनीर्विद्या रक्षित्वा सर्वेभ्यो ददासि तस्माद्भवानेतासु क्रियास्वग्रगण्यो भवति ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात विद्युत व वायूच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर पूर्व सूक्ताच्या अर्थाची संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो! ज्यामुळे तुम्ही सनातन विद्येचे रक्षण करून ती सर्वांना देता. त्यामुळे तुम्ही या क्रियांमध्ये प्रमुख असता. ॥ १ ॥